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स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन


स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन बंगाल विभाजन के विरोध में किया गया था। बंगाल उस समय राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बिंदु था, और रिजले के सुझाव पर, बंगाल में राष्ट्रीयता की भावना को दबाने, हिन्दू मुस्लिम की एकता को तोड़ने और इस्लामवाद की भावना को बढ़ाने के लिए लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया।

स्वदेशी आंदोलन सबसे पहला अखिल भारतीय आंदोलन था। इस आंदोलन को व्यापक जान समर्थन प्राप्त हुआ था। इस आंदोलन में सबसे पहले स्वदेशी को अपनाने और विदेशी सामान का विरोध करने का नारा दिया गया था।

यह प्रथम आंदोलन था जिसमें महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इन्होंने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया और धरने पर भी बैठी।

 

आंदोलन का आरम्भ


बंगाल विभाजन की घोषणा होते ही जगह जगह इसके विरोध में प्रदर्शन होने लगे। 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हॉल में एक विशाल प्रदर्शन किया गया और स्वदेशी आंदोलन की घोषणा की गई। जनता से विदेशी कपड़ो और सामान का विरोध करने को कहा गया। इस आंदोलन को जनता का भरपूर सहयोग मिला।

16 अक्टूबर 1905 से बंगाल विभाजन प्रभावी हो गया। इसे आंदोलनकारियों ने शोक दिवश के रूप में मनाया और एकता के प्रतीक में एक दूसरे को राखी बांधी।

गरम पंथी नेताओं ने स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को पूरे देश में फ़ैलाने का प्रयास किया। पुणे व महाराष्ट्र में इसका नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक और उनकी पुत्री केतकर ने किया। पंजाब और उत्तर प्रदेश में नेतृत्व अजीत सिंह और लाला लाजपत राय ने किया। दिल्ली में नेतृत्व सय्यद हैदर ने किया। मद्रास में नेतृत्व चिदंबरम पिल्लई और सुभ्रमण्यं अय्यर ने किया।
इस आंदोलन में आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति का नारा दिया गया। आत्म निर्भर बनने के लिए स्वदेशी उत्पाद बनाने को प्रोत्साहित किया गया और उत्पादों को वितरित करने की व्यवस्था की गई। इस क्रम में प्रफुल्ल चंद्र राय ने बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर की स्थापना की।

इस अभियान में विभिन्न संगठनों और संस्थओं ने भाग लिया। बरसाली की स्वदेशी बान्धव समिति (अश्वनी कुमार घोष) ने लोगों को विदेशी आर्थिक नीतियों के विरुद्ध जागृत किया।
 

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इस अभियान में स्कूल और कॉलेज के छात्रों ने भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया। ब्रिटिश सरकार ने छात्रों को रोकने के लिए कार्लाइल सर्कुलर जारी किया। जिसमें स्कूलों और कॉलेजों को छात्रों को रोके के लिए कहा गया। इसके विरोध में छात्रों ने स्कूल और कॉलेजों को छोड़ दिया। 1905 में रंगपुर नेशनल कॉलेज स्थापना की गई।

इस आंदोलन का सबसे अधिक प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र पर पड़ा।  इसी समय रविंद्र नाथ टैगोर ने अमार सोनार बंगला नामक प्रसिद्ध गीत लिखा। जो बाद में बंगाल देश का राष्ट्रीय गान बना।

इस प्रकार यह आंदोलन अत्यन्त सफल रहा। परंतु नरम दल के विरोध के चलते यह आंदोलन अधिक समय तक नहीं चल पाया। 1907 में सूरत अधिवेशन में कांग्रेस 2 भाग में टूट गई और ब्रिटिश सरकार ने गरम दल के नेताओं को तोड़ दिया। 1908 में तिलक को गिरफ्तार कर वर्मा की जेल में डाल दिया गया।

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