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अंग्रेजों का भारत आगमन (Part 1)

अंग्रेजों का भारत आगमन

(Part 1)

 

सन 1599 ईस्वी में प्रथम अंग्रेज व्यापारी जॉन मिल्देनहॉल भारत आया । इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में हुई। 31 दिसंबर 1600 में महारानी एलिजाबेथ ने एक चार्टर जारी करके गवर्नर और लंदन की कंपनी के व्यापारियों को पूर्व में व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया। प्रारंभ में यह 15 वर्ष के लिए जारी किया गया था। परंतु बाद में यह अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया।

 धन की दृष्टि से ईस्ट इंडिया कंपनी डच कंपनी की तुलना में छोटी कंपनी थी। प्रारंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना ध्यान इंडोनेशियाई काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर अपना ध्यान दिया। कुछ समय बाद उनका ध्यान भारतीय कपड़ा व्यापार पर गया । उन्होंने इसका महत्व समझा और कपड़े के बदले में मसाले इंडोनेशिया से खरीदने लगे ।

इसके बाद अंग्रेजों ने गुजरात में सूरत में कारखाना खोलने की योजना बनाई । इस उद्देश्य से उन्होंने कैप्टन विलियम हॉकिंस को जहांगीर के दरबार में 1609 में भेजा। किंतु हॉकिंस अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हुआ। लेकिन इसी वर्ष 1611 में मुसलीपट्टम में अंग्रेज एक कारखाना स्थापित करने में कामयाब हुए। सन 1613 ईस्वी में जहांगीर ने सूरत में स्थाई कारखाना खोलने की अनुमति दी।

सन 1615 में सर थॉमस रो मुगल दरबार में आया यह भी व्यापारिक उद्देश्य से जहांगीर से मिला। और जहांगीर ने विभिन्न स्थानों पर कारखाने स्थापित करने की अनुमति प्रदान की। सन 1623 ईस्वी में सूरत और मुसलीपट्टम के अतिरिक्त भड़ौच और अहमदाबाद में कारखाने खोले गए साथ ही साथ उनकी किलेबंदी की गई।

सन 1632 में गोलकुंडा के सुल्तान द्वारा अंग्रेजो को सुनहरा फरमान जारी किया गया।  जिससे अंग्रेजों को 500 बेगड़ा सालाना देकर गोलकुंडा राज्य के बंदरगाह पर स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार करने का अधिकार प्राप्त हुआ। सन 1639 ईस्वी में अंग्रेजों ने चंद्रगिरि के राजा से मद्रास पट्टे पर लिया और एक किले का निर्माण किया।  जिसे फोर्ट सेंट जॉर्ज नाम दिया गया ।  और यही बाद  में कोरोमंडल तट पर अंग्रेजों का मुख्यालय बना।
डच से चतुरता के कारण शत्रुता के कारण अंग्रेज और पुर्तगाली निकट आये, और सन 1661 में ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रिग्रेजा से विवाह कर लिया।

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