1905 में, बनारस में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो नरम पंथी तथा गरम पंथियों के मतभेद स्पष्टः सामने आ गये। यहाँ बाल गंगाधर तिलक द्वारा नरम पंथियों नीति की कटु आलोचना की।
गरम पंथियों का मत था की यही वह उचित समय है जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन पूर्ण रूप से चरम पर आ सकता है और ब्रिटिश शासन को उखाडा जा सकता है। गरम पंथि स्वदेश एवं बहिष्कार आंदोलन पूरे बंगाल के साथ-साथ, सम्पूर्ण देश में चलना चाहते थे तथा चाहते थे की इसमें सरकारी कर्मचारियों को भी सम्मिलित किया जाए। जबकि उदारवादी चाहते थे आंदोलन केवल बंगाल तक ही सीमित रखने के पक्ष में थे तथा अन्य सरकारी कर्मचारियों को इसमें सम्मिलित नहीं करना चाहते थे।
उदारवादी चाहते थे कि बंगाल विभाजन का विरोध संवैधानिक तरीके से हो। इसका मध्य मार्ग निकालते हुए कांग्रेस ने स्वदेशी आन्दोलन के समर्थन को स्वीकार कर लिया जिससे विभाजन कुछ समय तक टल गया। 1905 के बनारस अधिवेशन के अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी।
उसके बाद जब 1906 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। तो यहाँ भी गरम पंथी और नरम पंथी गुट आमने सामने आ गए। नरम पंथी रास बिहारी बोस को अध्यक्ष बनाना चाहते थे पर गरमपंथी चाहते थे कि इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय या बाल गंगाधर तिलक करें। गरम पंछियों ने यहाँ अहिंसात्मक प्रतिरोध तथा अंग्रेजी संस्थाओं इत्यादि का बहिष्कार करने की मांग की। गरम पंथी, उदार वादियों को महत्वहीन मानाने लगे। उदार वादियों का मत था की विरोध संवैधानिक तरीके से ही हो। वे भारतीयों को निकाय सुधार के द्वारा प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी का स्वप्न देख रहे थे और जल्दी बाजी में ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहते थे, जिससे भारतीयों का नुकसान हो। 1906 के कलकत्ता अधिवेशन के अध्यक्षता दादा भाई नैरोजी ने की थी।
पुनः गरम पंथी और नरम पंथी में मतभेद 1907 के कांग्रेस का अधिवेशन के लिए हुये।
गरम पंथी चाहते थे कि अधिवेशन नागपुर में हो और उसकी अध्यक्षता तिलक या लाला लाजपत राय करें साथ ही स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन और राष्ट्रीय शिक्षा को सर्वसम्मति से पारित किया जाय।
जबकि नरमपंथी चाहते थे कि अधिवेशन सूरत में किया जाए और इसकी अध्यक्षता रासबिहारी बोस करें साथ ही वह स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन तथा राष्ट्रीय शिक्षा के प्रस्ताव को वापस लेने मांग कर रहे थे। इस प्रकार यह दोनों पक्ष आमने सामने आ गए और कांग्रेस का विभाजन हो गया।
इसके बाद सरकार द्वारा बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार कर लिया गया और मांडले जेल बर्मा में भेजा गया। साथ ही विरोधी आंदोलनों को दबाने के लिए सरकार द्वारा 1907 से 1911 के बीचकई कानून बनाए गए।
जैसे राजद्रोही सभा अधिनियम (1907), भारतीय समाचार पत्र अधिनियम (1908) फौजदारी कानून अधिनियम (संशोधित) (1908), भारतीय प्रेस अधिनियम (1910) आदि।
कांग्रेस विभाजन के बाद बिपिन चंद्र पाल तथा अरविंद घोष ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और लाला लाजपत राय विदेश चले गए। इस प्रकार उग्र आंदोलन मंद पड़ गया और इसमें तेजी तब आयी जब तिलक 1914 में जेल से रिहा हो हुए।
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