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1857 से पूर्व के विद्रोह

1857 से पूर्व के विद्रोह

अंग्रेजों के समय में 1857 के पूर्व और उसके बाद भी अनेक विद्रोह हुये ।  यह विद्रोह अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर हुए और इनके कारण भी अलग-अलग थे।  कुछ महत्वपूर्ण विद्रोह निम्न प्रकार है।

अंग्रेजों के विरुद्ध जनजातीय विद्रोह 

सन्यासी विद्रोह:
यह अंग्रेज शासन के विरुद्ध सबसे पहला विद्रोह था।  इसका उल्लेख बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा अपने उपन्यास आनंद मठ में  भी किया गया है।  यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा लगाए गए तीर्थयात्रा कर के विरुद्ध था।  इस आंदोलन को वारेन हेस्टिंग द्वारा 1820 में दबा दिया गया।

पागल पंथी विद्रोह:1813, बंगाल
यह विद्रोह करम शाह नमक एक मुस्लिम संत द्वारा आरम्भ किया गया। इनके पुत्र टीपू ने दहर्मिक और राजनीतिक कारणों से प्ररित होकर रैयतों पर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

फरायजी आंदोलन:1820, बंगाल
यह आंदोलन इस्लाम में फैली बुराइयों को समाप्त करने के लिए आरम्भ हुआ। बाद में यह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया। यह आंदोलन हाजी शिरियातुल्ला द्वारा आरम्भ किया गया था। इसे इनके पुत्र मुहम्मद मोहसिन (दादू मियां) ने आगे बढ़ाया। इनके कहने पर  किसानों ने जमींदारों और अन्ग्रेजों को कर देने से इन कर दिया। इनको व्यापक जान समर्थन प्राप्त हुआ।

बहाबी आंदोलन: 1830 पटना
इस आंदोलन का आरंभ सैयद अहमद द्वारा 1830 में किया गया। इसका उद्देश्य इस्लाम को पुनः उसे मूल रूप में स्थापित करना था। पर बाद में यह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।
अंतिम समय में इसके केंद्र सिथानी (पेशावर) में हो गया। 1831 में सैयद अहमद की मृत्यु के साथ यह आंदोलन भी दब गया।

पांड्यागारों का विद्रोह:1801 से 1805 
यह विद्रोह दक्षिण भारत में पांडय गारों (किले के सरदारों) द्वारा आरम्भ किया गया था। उन्होंने अंग्रेजों की अधीनता को अस्वीकार कर  दिया और कर देने से इंकार कर दिया। 1806 में इस विद्रोह को दबा दिया गया। 

कूका विद्रोह: 1840, पंजाब, नेता- कूका
कूका विद्रोह एक धार्मिक आंदोलन था। इसका आरम्भ जवाहर मल और उनके शिष्य बालक सिंह द्वारा, सिक्ख समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए किया गया था। अंग्रेजों द्वारा पंजाब को हथिया लेने के उपरांत यह अंग्रेज विरोधी हो गया और इसका उद्देश्य पंजाब में सिक्ख साम्राज्य की स्थापना से जुड़ा गया। 

अहोम विद्रोह: 1828, असम 
अंग्रेज और वर्मा युद्ध के बाद अन्ग्रेजों के वचनानुसार अंग्रजों ने असम को नहीं छोड़ा और उस पर अधिकार कर लिया। इसके विरोध में 1828 में गदाधर के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह 1830 में दबा दिया गया।

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