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खिलाफत और असहयोग आंदोलन (Khilafat and Non-cooperation movement)

खिलाफत और असहयोग आंदोलन



खिलाफत और असहयोग आंदोलन 1919-1920 में चलाए गए दो सशक्त आंदोलन थे।  यद्यपि इन दोनों की शुरुआत भिन्न-भिन्न मुद्दों के साथ हुई थी, पर दोनों ने ही "अहिंसात्मक असहयोग "का मार्ग चुना।  

प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत भारतीय जनता अंग्रेजी सरकार के शासन की प्रताड़ना से त्रस्त हो गई थी।  अंग्रेजों द्वारा भारतीयों का विभिन्न प्रकार से शोषण किया जा रहा था।  महंगाई से त्रस्त जनता पर अतिरिक्त कर का बोझ डाला गया, देश में जब अनेकों जगह पर प्लेग, सूखा आदि महामारियां फैला हुआ था पर सरकार ने जनता का शोषण जारी रखा।  रोलेट एक्ट, पंजाब में मार्शल लॉ, जलियांवाला बाग कांड, जनरल डायर का ब्रिटिश संसद द्वारा सम्मान, यह सब वे कारण थे जिनसे भारतीय जनता ने अंग्रेज सरकार से घृणा करने लगी थी। 

खिलाफत आंदोलन का आरम्भ : 

प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया का साथ दिया था। जिस कारण युद्ध के बाद ब्रिटेन द्वारा तुर्की के प्रति कठोर व्यवहार अपनाया गया और तुर्की को दो भागों में विभाजित कर दिया गया।  साथ ही खलीफा को पद से हटा दिया गया। तुर्की और खलीफा के प्रति इस व्यवहार से संपूर्ण विश्व के मुसलमानो के साथ साथ भारतीय मुसलमानों ने भी इसका विरोध किया।  

1919 में मोहम्मद अली और शौकत अली (अली बंधुओं ),  मौलाना अबुल कलाम आजाद, हसरत मोहानी और कुछ अन्य नेताओं के नेतृत्व में तुर्की के साथ हुये अन्याय के विरोध में खिलाफत आंदोलन का आरम्भ किया गया ।  

खिलाफत आंदोलन के आंदोलन आरंभ में सभाओं, धरनों एवं पत्र व्यवहारों तक ही सीमित था।  बाद में इस आंदोलन को महात्मा गांधी का साथ मिला।  

नवंबर 1919 में महात्मा गांधी को खिलाफत आंदोलन का अध्यक्ष चुना गया।  गांधीजी ने अंग्रेजो के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का आरंभ किया।  साथ ही गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को अंग्रेजों के विरुद्ध व्यापक जन आंदोलन का मंच बना लिया।  

आरंभ में कांग्रेसी खिलाफत आंदोलन का साथ नहीं देना चाहती थी पर गांधी जी ने कांग्रेस को इसके लिए बना लिया। गांधीजी इस बात को भली प्रकार जानते थे कि मुसलमान संप्रदाय को राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ने का यही मौका है। 

1920 के आरंभ में हिंदू और मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल, खिलाफत के सम्बन्ध में ,वायसराय से मिला।  पर कोई लाभ नहीं हुआ।  उसके बाद एक प्रतिनिधिमंडल इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लायड जार्ज से मिला।  वहां भी निराशा ही हाथ लगी। 

मई 2020 में पेरिस में तुर्की के साथ से संधि की गई जिसमें विभाजन को सुनिश्चित कर दिया गया। 

जून 9 जून 1920 को इलाहाबाद में खिलाफत समिति का अधिवेशन हुआ यहां गांधी जी को आंदोलन की बागडोर दे दी गई। 

असहयोग आंदोलन का आरंभ:

1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन का आरंभ हुआ।  सितंबर 1920 में कोलकाता कांग्रेस के अधिवेशन में पंजाब एवं खिलाफत मुद्दे को हल किये जाने एवं स्वराज्य की स्थापना तक असहयोग कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया गया। साथ ही निर्णय लिया गया की सभी सरकारी संस्थाओं, शिक्षण संस्थाओं, न्यायालयों, विधानसभा आदि का  का बहिष्कार किया जाएगा।  

आंदोलन में गांधी जी द्वारा "केसरी ए हिन्द" उपाधि अंग्रेजों को लौटा दी गई।  अनेक अन्य लोगों ने भी अपनी उपाधियाँ लोटा दीं। कांग्रेस द्वारा आंदोलन के लिए 'तिलक स्वराज्य फण्ड' की स्थापना की गई और 1 करोड़ से अधिक का धन एकत्र किया गया। 

जुलाई 1921 कराची में अली बंधुओं ने घोषणा कि की सेना में रहना मुसलमानों के धर्म के खिलाफ है सभी को इस से त्यागपत्र देना चाहिए।  इस घोषणा के बाद अली बंधुओं को गिरफ्तार कर लिया गया।  बाद में अली बंधुओं के इस बयान की पुष्टि कांग्रेसमें भी की। 

गांधी जी द्वारा अली बंधुओं के साथ मिलकर पूरे देश में असहयोग आंदोलन का प्रचार प्रसार किया गया।  सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी छोड़ दी,वकीलों वकालत करना छोड़ दी, विदेशी वस्तुओं को जला दिया गया, सरकार को कर की आदायगी बंद कर दी गई और देश में आंदोलन का वातावरण गरमाता गया। इन्ही सब के बीच में जामिया मिलिया इस्लामिया,अलीगढ (जो बाद में दिल्ली में स्थापित हो गया था) और कशी विद्यापीठ,बनारस जैसे नए राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना राष्ट्रवादियों द्वारा की गयी|

पूरे आंदोलन में गांधी जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण ढंग से ही चलता रहे।  लेकिन उत्तर प्रदेश में 4 फरवरी 1922 को चौरी चौरा गांव में हुई घटना के कारण गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया।  इस घटना के बाद 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।  इस प्रकार असहयोग आंदोलन समाप्त हुआ। 

इस आंदोलन ने भारत के समाज को एक सूत्र में पिरो दिया था।  हिंदू मुस्लिम के अलावा समाज का हर वर्ग, हर धर्म, इस आंदोलन में कूद पड़ा था और सभी भारतीयों में स्वतंत्रता की आग जलाई थी। 

कुछ समय बाद खिलाफत आंदोलन जिस मुख्य मुद्दे के कारण (खिलाफत) शुरू हुआ था।  वह बेईमानी हो गया, क्योंकि नवंबर 1922 में मुस्तफा कमाल द्वारा तुर्की में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना कर दी गई तथा खलीफा का पद निरस्त कर दिया।


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