कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य संवैधानिक गतिरोध चल रहा था। इस गतिरोध को दूर करने के लिए अनेकों बार प्रयत्न किए गए। गांधी जी ने जिन्ना से बात करके इस गतिरोध को समाप्त करने का प्रयास किया। परंतु सभी प्रयास नाकाम रहे और अंततः पाकिस्तान भारत से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
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इन्हीं प्रयासों में से एक प्रयास सी राजगोपालाचारी द्वारा किया गया। वह मद्रास के एक प्रभावशाली नेता थे। उनका यह फार्मूला पाकिस्तान के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सहमति थी। इस कारण से कांग्रेश और राजगोपालाचारी के मध्य गतिरोध हुए । वीर सावरकर द्वारा सी राजगोपालाचारी कि इस योजना का तीखा विरोध किया गया। जिस कारण उन्होंने 1943 में कांग्रेस से अपना इस्तीफा दे दिया।
10 जुलाई 1944 को राजगोपालाचारी ने अपनी योजना प्रकाशित की। जो की जे सी आर फार्मूला नाम से प्रसिद्ध हुई। इनकी प्रमुख बातें निम्न प्रकार थी।
मुस्लिम लीग भारत की स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस का सहयोग और समर्थन करे
अस्थाई सरकारों के स्थापना के लिए मुस्लिम लीग कांग्रेस का सहयोग करे
युद्ध के बाद, मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मतदान से यह निर्णय लिया जाए कि वे प्रदेश भारत से अलग होना चाहते हैं या नहीं।
विभाजन होने पर प्रांतों के मध्य आवागमन तथा संचार के माध्यम बनाने के लिए दोनों देशों के मध्य समझौते हों।
परन्तु उपरोक्त सभी बातें तभी मान्य होगी जब भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो जाएगी।
जिन्ना द्वारा राजगोपालाचारी कि इस योजना को अस्वीकार कर दिया गया। जिन्ना का कहना था कि..
मत देने का अधिकार केवल मुसलमानों को दिया जाए ना की संपूर्ण जनता को।
जिन्ना द्वारा केंद्र में साझा सरकार बनाने के विचार का विरोध किया
जिन्ना केवल पाकिस्तान की मांग को पूर्ण करना चाहते थे वह भारत की स्वतंत्रता की कोई भी बात नहीं करते थे।
गांधी जी द्वारा सी राजगोपालाचारी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था। गांधी जी द्वारा जिन्ना से प्रार्थना करना, उसके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ, और गांधी जी द्वारा उसे कायदे आजम कहकर पुकारे जाने से उसका कद भी बड़ा हो गया। इस प्रकार गांधी जी ने जिन्ना को अत्यधिक महत्व देकर पाकिस्तान बनने के मार्ग को प्रशस्त कर दिया।
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