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भारत छोड़ो आंदोलन Quit India Movement

भारत छोड़ो आंदोलन Quit India Movement

आंदोलन का आरंभ

सन 1942, द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी।  क्रिस्प मिशन ने अंग्रेजों की नियत और अधिक स्पष्ट कर दी थी। वह भारत में संवैधानिक सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थे। अतः अब भारतीयों का चुप रहना, भारत के भविष्य के पक्ष में नहीं था।  

क्रिस्प मिशन के जाने के बाद कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने वर्धा बैठक में  'भारत छोड़ो आंदोलन' को पारित कर दिया, तथा 8 अगस्त 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान में हुई बैठक में 'भारत छोड़ो आंदोलन' के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई।  यहीं गांधी जी को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया, साथ ही घोषणा की गई कि भारत से ब्रिटिश शासन को तुरन्त समाप्त कर दिया जाए। 

यह आंदोलन काकोरी कांड के ठीक 17 साल बाद, 9 अगस्त 1942 को आरंभ किया गया। भगत सिंह ने 9 अगस्त को,  काकोरी कांड स्मृति दिवस मनाने की परंपरा शुरु की थी। अतः यह दिन आंदोलन आरम्भ करने का उत्तम दिन था। 

यह एक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन था। 

गांधी जी ने इस आंदोलन पर 'करो या मरो' का नारा दिया तथा   युसूफ मेहर अली जो कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे ने 'भारत छोड़ो' का नारा दिया।  भारत छोड़ो आंदोलन को ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है।

महात्मा गांधी व अन्य की गिरफ्तारियाँ 

अंग्रेज एक और जहां विश्वयुद्ध में घिरे थे, वहीं दूसरी ओर नेता सुभाष चंद्र बोस ने भी आजाद हिंद फौज को 'दिल्ली चलो' का नारा दे दीया था, साथ ही भारत में 'भारत छोड़ो आंदोलन' का आरंभ होने वाला था। अंग्रेज 'गांधी' नाम की ताकत को जान चुके थे।   वे इस आंदोलन को आरम्भ होने  से पहले ही दबा देना चाहते थे। अतः अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस को गैर - संवैधानिक संस्था घोषित कर इस पर प्रतिबंध लगा दिया और आंदोलन आरंभ होने से पूर्व ही, 8 अगस्त 1942 की रात्रि को गांधीजी समेत अनेक कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

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गांधी जी के साथ सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खां पैलेस में कैद कर दिया गया।  पर यह जन आंदोलन नहीं रुका। 9 अगस्त 1942 को लाल बहादुर शास्त्री ने इस आंदोलन में 'मरो नहीं मारो'  का नारा दे कर, आंदोलन को प्रचंड रूप दे दिया।  अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त, 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया और उषा मेहता ने अपने साथियों के साथ बंबई से काॅन्ग्रेस का गुप्त रेडियो का प्रसारण आरम्भ किया।  अंग्रेजों ने दमन के सहारे आंदोलन को दबाने का प्रयास किया। 19 अगस्त 1942 को शास्त्री जी को गिरफ्तार कर लिया गया। 
 

जन विद्रोह 

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अंग्रेजों ने इस आंदोलन को हिंसात्मक कार्यवाही से दबाने का पूरा प्रयास किया। कई स्थानों पर संघर्ष हुआ। बंगाल के तामलूक में 73 वर्षीय मतंगिनी हाजरा, असम के गोहपुर में 13 वर्षीय कनकलता बरुआ, बिहार के पटना में सात युवा छात्र व सैकड़ों लोग प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से मारे गए।

जनता ने अंग्रेजों की दमनात्मक कार्यवाही की प्रतिक्रिया में सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।  सरकारी संपत्ति को तोड़ दिया गया, सरकारी भवनों पर जबरन तिरंगा फहराया गया, रेल की पटरियाँ उखाड़ दीं गयीं,  टेलीफोन तथा तार लाइने काट दी गई, शिक्षण संस्थाओं में छात्रों ने हड़ताल कर दी, छात्र जुलूस निकालने लगे, आंदोलन के पर्चे बाँटे जाने लगे।  मजदूरों द्वारा काम रोक दिया गया। इस प्रकार भारत की जनता अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में कूद पड़ी थी।

समानांतर सरकारों का गठन

कई स्थानों पर जैसे- उत्तर प्रदेश में बलिया, बंगाल में तामलूक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारवाड़ और उड़ीसा में तलचर व बालासोर में लोगों द्वारा सामानांतर  सरकारों का गठन किया गया।  बलिया में चित्तू पांडे ने सामानांतर सरकार गठित की। सतारा में सरकार की स्थापना वाई बी चव्हाण तथा नाना पाटिल ने की।

भारत छोड़ो आंदोलन में जनता के हर वर्ग ने अभूतपूर्व सहयोग प्रदान किया। चाहे उद्योगपति हों, छात्र हों, सरकारी कर्मचारी हों या ग्रामीण सभी ने इस आंदोलन को पूर्ण समर्थन प्रदान किया।

सरकारी आँकड़ों के अनुसार भारत छोड़ो आंदोलन में 940  लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18000 डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा 60230 गिरफ्तार हुए। 








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