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सविनय अवज्ञा आंदोलन और नमक सत्याग्रह Civil disobedience movement and salt march

Civil disobedience movement and salt march

डोमिनियन स्टेट पर अनिर्णय

दिसंबर 1928 में कांग्रेस का अधिवेशन कोलकाता में हुआ,  जिसकी अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की। इस अधिवेशन में  यह निर्णय लिया गया की डोमिनियन स्टेट पर आधारित संविधान को यदि अंग्रेज सरकार 1 वर्ष के अंदर पेश नहीं करती तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य घोषित करेगी तथा इसको प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ करेगी।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से गांधीजी देशभर का दौरा करने लगे और युवाओं से आंदोलन में भाग प्रतिभाग करने के लिए तैयार करने लगे। गांधी जी के इस आंदोलन की तैयारी से अंग्रेज भयभीत हो रहे थे। अतः उन्होंने मार्च 1929 में कोलकाता में उन्हें गिरफ्तार कर लिया।  इस गिरफ्तारी ने पूरे देश में उत्तेजना फैला दी और अंग्रेज विरोधी भावनाएं जागृत हो उठी। इसी वर्ष मेरठ षड्यंत्र केस तथा भगत सिंह एवं बटुकेश्वर द्वारा केंद्रीय विधानसभा में बम विस्फोट  किया गया। इंग्लैंड में रेंजर मैकडॉनल्ड की लेबर पार्टी भी इसी वर्ष सत्ता में आयी।

31 अक्टूबर 1929 को लॉर्ड इरविन द्वारा यह घोषणा की गई कि भारत के विकास के संभावित मुद्दे 1917 की घोषणा में दिए गए हैं, उसी में डोमिनियन स्टेट की प्राप्ति की बात कही गई है।  साथ ही कहा गया कि साइमन कमीशन की रिपोर्ट के बाद एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया जाएगा। जिसमें डोमिनियन स्टेट के बारे में बात की जाएगी। 

नवंबर 1929 दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं के द्वारा एक घोषणा पत्र जारी किया गया। जिसे दिल्ली घोषणा पत्र कहा जाता है।  इसमें मांग की गई की गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य इस बात पर होना चाहिए कि डोमिनियन स्टेट लागू करने की योजना कब से लागू की जाय, ना कि डोमिनियन स्टेट दिया जाए या नहीं। साथ ही राजनीतिक अपराधियों को क्षमादान दे दिया।


23 दिसंबर 1929 को लार्ड इरविन द्वारा इन मांगों को अस्वीकार कर दिया गया।


पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य
 

जैसा कि 1928 के कोलकाता अधिवेशन में सुनिश्चित हुआ था, दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का घोषणा पत्र तैयार किया गया तथा इसे कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य रखा गया। यह अधिवेशन तत्कालीन पंजाब की राजधानी लाहौर में हुआ था।  जिसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने की।  


लाहौर अधिवेशन में निम्न मांगों को पास किया गया
1. गोल में सम्मेलन का पूर्ण बहिष्कार किया जाएगा
2 . कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य होगा
3 . कांग्रेस कार्यसमिति सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करेगी और करों का भुगतान नहीं किया जाएगा
4 . कांग्रेसका कोई भी सदस्य काउंसिल के चुनाव में भाग नहीं लेगा तथा मौजूदा सदस्य अपना त्यागपत्र दे देंगे
5 . 26 जनवरी 1930 का दिन पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

 

इसके बाद 31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के तट पर भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया।

26 जनवरी 1930 को पूरे देश में जगह-जगह सभाओं का आयोजन किया गया और तिरंगा फहराया गया तथा जनता को शपथ दिलाई गई कि वह सरकार को किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं देंगे, कांग्रेस पूर्ण स्वराज के लिए जो भी आंदोलन करेगी उसमें पूर्ण समर्थन समर्थन देंगे और आंदोलन में किसी भी प्रकार का हिंसा नहीं करेंगे। 

सविनय अवज्ञा आंदोलन का निर्णय 

लाहौर अधिवेशन के बाद गांधी जी द्वारा यंग इंडिया पत्रिका के माध्यम से अंग्रेज सरकार के समक्ष 11 मांगे रखी गई, और इसके लिए 31 जनवरी 1930 तक का समय दिया गया।  यह मांगे इस प्रकार थीं --

1 . सिविल सेवा तथा सेना का व्यय 50% कम किया जाए
2. नशीली वस्तुओं का विक्रय पूर्ण प्रतिबंधित हो
3. सी आई डी पर सार्वजनिक नियंत्रण हो या उसे समाप्त कर दें
4. भारतीयों को आत्मरक्षा हेतु हथियार रखने का लाइसेंस दिया जाए
5. सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए
6. डाक आरक्षण बिल पास किया जाए
7. रुपए की विनिमय दर घटाकर एक शीलिंग 4 पेंस की जाए
8 . विदेशी कपड़े का आयात नियंत्रित किया जाए
9 . तटीय यातायात रक्षा विधेयक पास हो
10 . लगान में 50% तक कमी हो तथा
11. नमक को कर मुक्त किया जाए एवं उस पर सरकारी एकाधिकार समाप्त कर दिया जाए।


Civil disobedience movement and salt march

फरवरी 1931 तक इन मांगों पर सरकार का कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला इसके उपरांत गांधी जी ने नमक के मुद्दे को आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ करने का निश्चय किया

नमक आंदोलन का आरम्भ 
 
2 मार्च 1930 को गांधीजी ने वायसराय को पत्र लिखा जिसमें 11 सूत्री मांगों का उल्लेख था उन्होंने कहा यदि सरकार उनकी मांगों को पूरा करने का प्रयास नहीं करेगी तो वे 12 मार्च से नमक कानून का उल्लंघन करेंगे सरकार द्वारा पत्रिका कोई जवाब नहीं आया इसके बाद 12 मार्च 1930 को गांधी जी द्वारा साबरमती आश्रम से 78 समर्थकों के साथ दांडी मार्च का आरंभ किया गया। ये सभी 24 दिन बाद 5 अप्रैल को डांडी पहुँचे, जहाँ उन्होंने 6 मार्च को नमक बना कर नमक कानून तोडा।

इस घटना के बाद पूरे देश में नमक कानून तोड़ने का  सिलसिला चल पड़ातमिलनाडु में तंजोर के समुद्री तट पर सि राजगोपालाचारी ने, त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम की नमक यात्रा की। मालाबार में के कालप्पन ने कालीकट से कोयन्नूर तक की नमक यात्रा की। आंध्र प्रदेश में कई स्थानों पर नमक सत्याग्रह के मुख्यालय  खोले ले गए। जवाहरलाल नेहरू को नमक कानून तोड़ने के अपराध में 14 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया गया।  

4 मई 1930 को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधीजी की गिरफ्तारी का पूरे देश में जबरदस्त विरोध हुआ। गांधीजी के गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने जनता से कर और लगान ना देने का अनुरोध किया।  साथ ही मध्यप्रदेश में वन कानून को का उल्लंघन करने को कहा। 

पेशावर में खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गांधी) ने खुदाई खिदमतगार नाम की स्वयंसेवी संस्था गठित की। यह संस्था लालकुर्ती नाम से प्रसिद्ध थी। इन्होंने साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन आंदोलन शुरू किया, और गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन प्रचार प्रसार किया। 

धारासणा में  नमक सत्याग्रह अति तीव्र था। सरोजनी नायडू, मणिलाल (गाँधी जी के पुत्र ) एवं इमाम साहब ने 2000 आंदोलन कर्ताओं के साथ धारासणा नमक कारखाने के सामने प्रदर्शन किया। यह आंदोलन शांतिपूर्वक चल रहा था परंतु पुलिस ने दमन का सहारा लिया और प्रदर्शनकारियों को बुरी तरह से पीटा। बिहार में चौकीदारी कर का जबरदस्त विरोध किया गया। 

इस पूरे आंदोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी घर से बाहर निकल कर आंदोलन में भाग लिया।  महिलाओं द्वारा विदेशी कपड़ों की दुकानों, शराब की दुकानों और अफीम के ठेकों पर प्रदर्शन किए गए। 

इस पूरे आंदोलन में लगभग 90000 लोग जेल में भर दिए गए और हजारों लोग घायल हुए।  सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आंदोलन में 110 लोग पुलिस गोलाबारी में मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए।
आंदोलन के बीच कई प्रकर के प्रतिबंध लगा कर राष्ट्रवादी समाचार पत्रों का गला घोट दिया गया। 


गांधी-इरविन समझौता

25 जनवरी 1931 को गांधीजी समेत कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया।  उसके बाद 5 फरवरी 1931 को गांधीजी और वायसराय लॉर्ड इरविन के मध्य समझौता हुआ।  जिसे ‘गांधी-इरविन समझौता’ या ‘दिल्ली पैक्ट’ भी कहा जाता है इस समझौते के अंतर्गत यह सुनिश्चित हुआ कि--

1. राजनीतिक अपराधियों को छोड़ दिया जाएगा।
2. समुद्र तट के किनारे बसे लोगों को नमक बनाने एवं उसका प्रयोग करने की छूट दी जाएगी।
3. शराब शराब अफीम और विदेशी कपड़ों की दुकान पर दुकानों के सामने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन विरोध प्रदर्शन किया जा सकेगा।
4. अपहृत संपत्ति वापस कर दी जाएगी और जुर्मानों की वसूली रोक दी जाएगी।


इस समझौते के उपरांत यह आंदोलन कांग्रेस द्वारा स्थगित कर दिया गया। 

गांधी जी द्वारा इरविन से भगत सिंह और उसके साथियों की फाँसी की सजा रोकने की माँग भी की गई थी जिसे इरविन द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। 


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