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महात्मा गांधी जी के प्रथम तीन आंदोलन The first three movements of Mahatma Gandhi




 महात्मा गांधी के प्रथम आंदोलन


गांधी जी द्वारा रोलेट एक्ट सत्याग्रह (1919) से पूर्व तीन आंदोलन, चंपारण अहमदाबाद एवं खेड़ा में किए गए। इनके बाद ही गांधी जी जन नायक के रूप में उभरे।

चंपारण आंदोलन 1917  

गांधी जी द्वारा पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन चंपारण में आरंभ किया गया। यह आंदोलन तिनकाठिया पद्धति के विरुद्ध था। जिसके अंतर्गत किसानों से एक अनुबंध के तहत उनकी भूमि के 3/20 वें भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था। चूंकि, 1919 के अंत में रसायनिक रंगों का उत्पादन होने लगा था तो यह नील की खेती फायदे का सौदा नहीं रह गया था। किसान भी इस नील की खेती से मुक्त होना चाहते थे। अतः एक नए अनुबंध के तहत अंग्रेजों द्वारा किसानों को एक प्रस्ताव दिया गया कि यदि वे अतिरिक्त कर देने को तैयार हो जाएं तो वह उन्हें इस अनुबंध से मुक्त कर देंगे। इस प्रकार अंग्रेजों ने इसमें भी अपना फायदा निकाला। अंग्रेजों द्वारा दूसरी फसलों को भी मनमाने दामों पर खरीदा जा रहा था।  
इस आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार राजकुमार शुक्ल थे।  जिन्होंने गांधीजी को चंपारण बुलाया।  राजकुमार पुत्र जी के बुलावे पर जब गांधी जी की सा राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर जब गांधीजी किसानों की वास्तविक स्थिति देखने के लिए चंपारण पहुंचे, तब अंग्रेजों द्वारा उन्हें वापस चले जाने के लिए कहा गया।  इसके बाद गांधी जी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया गया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन था।
मजबूर हो कर अंग्रेज सरकार द्वारा मामले की जांच के लिए एक आयोग गठित किया गया।  जिसमें गांधी जी को एक को भी एक सदस्य बनाया गया।  गांधीजी आयोग को यह समझाने में सफल हुए कि यह पद्धति समाप्त होनी चाहिए, तथा किसानों से अवैध रूप से वसूले गए धन को उन्हें वापस किया जाना चाहिए।  इसके बाद अंग्रेज बागान मालिकों द्वारा किसानों को अवैध रूप से वसूले गए धन का 25% भाग लौटा दिया गया।  इस प्रकार गांधी जी द्वारा छेड़ा गया प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन सफलतापूर्वक समाप्त हुआ।


अहमदाबाद आंदोलन (1918)

गांधीजी की दूसरी प्रमुख विजय अहमदाबाद में हुई जहां मिल मालिकों और मजदूरों के बीच में प्लेग बोनस को लेकर विवाद था।  जहां मजदूर 35% बोनस की मांग कर रहे थे, वहीं  मिल मालिक 20% से अधिक देने को तैयार नहीं थे।  यहाँ गांधी जी द्वारा मजदूरों के समर्थन में भूख हड़ताल करने का फैसला लिया गया।  मजदूरों ने भी मजदूरों ने भी गांधीजी का बढ़ चढ़कर साथ दिया।  इस हड़ताल में अंबालाल साराभाई की बहन अनुसुइया बहन ने गांधी जी का साथ दिया।  मजबूर होकर मिल मालिक समझौते के लिए तैयार हुए और सारे मामले को एक ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया।  जिसने मजदूरों के पक्ष में फैसला लिया और मिल मालिकों को 35% बोनस देने का आदेश दिया।

 

खेड़ा आंदोलन (1918)

गांधी जी का तीसरा आंदोलन खेड़ा में आरंभ हुआ। यह प्रथम असहयोग आंदोलन भी कहलाता है। सन 1918 में खेड़ा में भयंकर अकाल पड़ा था।  जिस कारण किसानों की पूरी खेती नष्ट हो गई थी। परंतु किसानों की इस दुर्दशा में भी अंग्रेजों द्वारा किसानों से पूरा लगान वसूल किया जा रहा था।  जबकि राजस्व संहिता में भी यह साफ साफ अंकित था कि यदि ऊपज एक चौथाई भाग से कम हो, तो लगान माफ कर दिया जाएगा।  पर अंग्रेजों ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया।  मजबूरन गांधी जी को किसानों के लिए आंदोलन करना पड़ा।  गांधी जी ने किसानों को लगान न देने की शपथ दिलाई। साथ ही, गांधी जी ने घोषणा की यदि सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दे तो वह किसान जो लगान देने में समर्थ हैं, अपना लगान दे देंगे। परंतु अंग्रेजों ने दमन नीति अपनाकर लगान लेना जारी रखा। बाद में अंग्रेज सरकार द्वारा अधिकारियों  आदेश जारी किया गया कि लगान उन्हीं लोगों से वसूला जाय जो कि देने में समर्थ है। इस प्रकार गांधीजी का उद्देश्य सफल हो गया।

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