1565 में तालीकोटा के युद्ध के बाद मैसूर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में उभरा। इस पर वोडेयार वंश का शासन स्थापित हुआ। इस वंश का अंतिम शासक चिक्का कृष्ण देव राज वोडेयार था। पर वास्तविकता दो मंत्री भाइयों देवराज और नंद राज के हाथों में थी।
हैदर अली एक सैनिक के रूप में नंदराज की सेना में भर्ती हुआ। जो अपनी योग्यता से फौजदार पद पर नियुक्त हुआ। 1755 में जब मैसूर की राजधानी 'श्रीरंगपट्टनम' में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी। तो हैदर अली ने हस्तक्षेप किया और धीरे-धीरे 1761 में सत्ता अपने हाथ में ले ली।
इस प्रकार 1761 में हैदर अली मैसूर का शासक बना।
अंग्रेज और मैसूर राज्य के मध्य चार युद्ध हुए।
आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1767-1769 तक चला। जिसमें हैदर अली ने अंग्रेजों को पराजित किया । यह युद्ध मद्रास की संधि से समाप्त हुआ।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1780 से 1784 तक चला। जिसमें अंग्रेजों का नेतृत्व वारेन हेस्टिंग ने किया। इस युद्ध के बीच दिनांक 7 दिसंबर 1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गई। यहां से टीपू ने युद्ध की कमान संभाली और अंग्रेजों का सामना किया। इस युद्ध का अंत मंगलोर की संधि के साथ हुआ। इस संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते भाग लौटा दिए।
तृतीय आंग्ल मैसूर:
यह युद्ध 1790 से 1792 तक चला। इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व कार्नवालिस ने किया। इस युद्ध की समाप्ति टीपू के आत्मसमर्पण के साथ हुई। जिस के उपरांत उसने श्रीरंग श्रीरंगपट्टनम की संधि करनी पड़ी। जिसमें उसे अपने राज्य का आधा भाग गंवाना पड़ा।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1799 में लड़ा गया। इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व लार्ड वेलेजली ने किया था। इस युद्ध में टीपू मारा गया। इस प्रकार बंगाल के बाद मैसूर दूसरा राज्य था जिस पर अंग्रेजों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया।
1787 ईस्वी में टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में 'पदशाह' की उपाधि धारण की।
अपनी राजधानी में टीपू ने मित्रता का वृक्ष लगाया था और साथ ही जैकोबिन क्लब का सदस्य बना था।
हैदर अली एक सैनिक के रूप में नंदराज की सेना में भर्ती हुआ। जो अपनी योग्यता से फौजदार पद पर नियुक्त हुआ। 1755 में जब मैसूर की राजधानी 'श्रीरंगपट्टनम' में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी। तो हैदर अली ने हस्तक्षेप किया और धीरे-धीरे 1761 में सत्ता अपने हाथ में ले ली।
इस प्रकार 1761 में हैदर अली मैसूर का शासक बना।
अंग्रेज और मैसूर राज्य के मध्य चार युद्ध हुए।
आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1767-1769 तक चला। जिसमें हैदर अली ने अंग्रेजों को पराजित किया । यह युद्ध मद्रास की संधि से समाप्त हुआ।
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1780 से 1784 तक चला। जिसमें अंग्रेजों का नेतृत्व वारेन हेस्टिंग ने किया। इस युद्ध के बीच दिनांक 7 दिसंबर 1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गई। यहां से टीपू ने युद्ध की कमान संभाली और अंग्रेजों का सामना किया। इस युद्ध का अंत मंगलोर की संधि के साथ हुआ। इस संधि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते भाग लौटा दिए।
तृतीय आंग्ल मैसूर:
यह युद्ध 1790 से 1792 तक चला। इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व कार्नवालिस ने किया। इस युद्ध की समाप्ति टीपू के आत्मसमर्पण के साथ हुई। जिस के उपरांत उसने श्रीरंग श्रीरंगपट्टनम की संधि करनी पड़ी। जिसमें उसे अपने राज्य का आधा भाग गंवाना पड़ा।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध:
यह युद्ध 1799 में लड़ा गया। इसमें अंग्रेजों का नेतृत्व लार्ड वेलेजली ने किया था। इस युद्ध में टीपू मारा गया। इस प्रकार बंगाल के बाद मैसूर दूसरा राज्य था जिस पर अंग्रेजों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया।
1787 ईस्वी में टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में 'पदशाह' की उपाधि धारण की।
अपनी राजधानी में टीपू ने मित्रता का वृक्ष लगाया था और साथ ही जैकोबिन क्लब का सदस्य बना था।
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