बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल अंग्रेजो के कब्जे में आ गया था। इसके बाद अंग्रेजों ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की। यह असल में द्वैध शासन के नाम पर बंगाल में लूट का आरंभ था। यह योजना रॉबर्ट क्लाइव ने बनायी थी। बंगाल में द्वैध शासन 1765 से 1772 तक चला।
अंग्रेजों
ने क्योंकि मुगल बादशाह को पराजित किया था इसलिए अंग्रेजों ने मुगल बादशाह
से 12 अगस्त 1765 में इलाहाबाद की संधि की। संधि के अनुसार अंग्रेजो को बंगाल
बिहार और उड़ीसा की दीवानी यानी राजस्व वसूली का अधिकार मिल गया तथा इसके बदले में अंग्रेजों
द्वारा मुगल बादशाह को ₹26 लाख वार्षिक देना तय हुआ।
उसके बाद अंग्रेजों
ने बंगाल के नवाब नज़मुदौला को 53 लाख रुपये देकर उससे बंगाल के सूबेदारी अर्थात कानून व्यवस्था का अधिकार भी प्राप्त कर लिया। अब बंगाल में प्रशासनिक अधिकारी की
नियुक्ति का अधिकार कंपनी को मिल गया था।
नोट: मुगल प्रशासन में दीवान नामक अधिकारी राजस्व वसूली तथा वित्तीय कार्य देखते थे, तथा सूबेदार कानून व्यवस्था का कार्य देखते थे। यह दोनों मुगल बादशाह के प्रति उत्तरदाई होते थे।
इसके बाद अंग्रेजों ने बंगाल बिहार तथा उड़ीसा में अपने पसंद के भारतीयों को उपदीवान तथा नायाब सूबेदार नियुक्त किया।
कंपनी ने बंगाल में मोहम्मद रजा खाँ, बिहार में राजा खिताब राय तथा उड़ीसा में राय दुर्लभ को उपदीवान नियुक्त किया। तथा मोहम्मद रजा खाँ को नायाब सूबेदार भी बनाया गया।
इस प्रकार बंगाल में वास्तविक अधिकार तो कंपनी के पास थे पर प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब का था। बंगाल की यही शासन व्यवस्था ही द्वैध शासन प्रणाली कहलायी।
द्वैध शासन के परिणाम स्वरूप बंगाल में व्यवसायियों से अधिक कर वसूला गया। किसानों से अत्यधिक भू राजस्व की वसूली की गई। जुलाहों को हतोत्साहित किया गया, उनसे जबरन कपड़े का कच्चा माल तैयार कराया गया। जिस कारण बंगाल में व्यवसाय तथा खेती का पतन हो गया। एक अत्यंत समृद्ध प्रांत को कंपनी द्वारा मनमाने तरीके से लूटा गया। जिस कारण ये अत्यंत दुर्बल एवं दरिद्र हो गया।
बंगाल से ही कंपनी द्वारा भारत को कच्चे माल के स्रोत के रूप में बनाना आरंभ किया गया।
3 टिप्पणियाँ
Very nice
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद