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मुस्लिम लीग की स्थापना Establishment of Muslim League

 मुस्लिम लीग की स्थापना 

 



सर सैयद अहमद खान, जो कि मुसलमान समुदाय के एक प्रतिष्ठित नेता थे, उनको अंग्रेज यह समझाने में सफल रहे  कि कांग्रेस हिंदू राष्ट्र वादियों का संगठन है , और अगर कांग्रेस अपने उद्देश्यों में सफल होती है तो भारत के राजनीतिक आकाश पर हिन्दुओं का ही वर्चस्व होगा और मुसलमान गुलामों के तौर पर भारत में रहेंगे। और यही संदेश  सैयद अहमद खान द्वारा मुसलमान समुदाय में भी प्रचारित होने लगा। इसका एकमात्र उद्देश्य मुसलमान समुदाय को कांग्रेस और इसके राष्ट्रवादी कार्यक्रमों से अलग रखना था। 


1905 में जब बंगाल राष्ट्रवाद का केंद्र बनकर उभर रहा था। तब अंग्रेजों द्वारा उसे रोकने के लिए 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई गई। अंग्रेजों द्वारा बंगाल को धर्म के आधार पर बांट दिया गया।  एक पूर्वी बंगाल भाग मुसलमानों के लिए और दूसरा पश्चिमी भाग हिंदुओं के लिए।
बंगाल विभाजन का पूरे बंगाल में विरोध हुआ परंतु मुसलमान समुदाय इस घोषणा के पक्ष में था। मुसलमान समुदाय को पहले ही सर सैयद अहमद खान के माध्यम से अंग्रेज अपने पक्ष में कर चुके थे। कांग्रेस द्वारा  बंगाल विभाजन  के विरोध में चलाए गए आंदोलनों  में मुसलमान समुदाय ने भाग नहीं लिया। उनके द्वारा बंगाल विभाजन  के पक्ष में आंदोलन चलाया गया और उनका नेतृत्व किया नवाब नवाब सलीमुल्ला ने, और कांग्रेसी से अपनी दूरी बढ़ा ली। 


मुसलमान समुदाय द्वारा यह मान लिया गया था कि कांग्रेसी उनके हितों पर चोट कर रही है। 


मुसलमान समुदाय के राजनीतिक हितों की सुरक्षा कीजिए मुसलमानों को एक राष्ट्रीय मंच की आवश्यकता महसूस हुई।  इस क्रम में 1 अक्टूबर 1906 को आगा खां के नेतृत्व में 35 लोगों का एक शिष्टमंडल लॉर्ड मिंटो से शिमला में मिला। उन्होंने केंद्रीय, प्रांतीय एवं निकाय चुनावों में विशिष्ट स्थिति  (पृथक निर्वाचक मंडल) की मांग की।  लॉर्ड मिंटो द्वारा मुसलमानों को राजनीतिक अधिकारों की सुरक्षा का आश्वासन दिया गया। 


अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए, ढाका  के नवाब सलीमुल्ला एवं आगा खां द्वारा 30 दिसंबर 1906 को ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।  इसके प्रथम अध्यक्ष वकार उल मुल्क थे।
मुस्लिम लीग का द्वितीय अधिवेशन 1907 में कराची में हुआ। जिसमें लीग का संविधान बनाया गया।  संविधान में मुस्लिम लीग के निम्न उददेश्य निश्चित हुये।
१.  मुस्लिम मुसलमानों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा पैदा करना
२.  मुसलमानों  के राजनीतिक एवं अन्य अधिकारों के अधिकारों की रक्षा करना
३.  मुसलमानों को कांग्रेस एवं उसके आंदोलनों से दूर रखना
मुस्लिम लीग द्वारा मांगी गई पृथक  निर्वाचक मंडल की मांग, 1909 के मार्ले मिंटो सुधार में लागू कर दी गयी।

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