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रॉलेट एक्ट एवं रॉलेट एक्ट सत्याग्रह Rowlatt Act and Rowlatt Act Satyagraha

रॉलेट एक्ट एवं रॉलेट एक्ट सत्याग्रह 

 

प्रथम विश्व  युद्ध में भारतीयों ने ब्रिटिश साम्राज्य का साथ दिया था। जब प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया तो भारतीय जनता ब्रिटिश सरकार से संवैधानिक सुधारों की अपेक्षा कर रही थी। परन्तु अंग्रेजों  द्वारा दमनकारी रॉलेट एक्ट भारतीय जनता को प्रस्तुत किया गया।  भारतीय अंगरेजों की इस रवैये से अत्यंत क्रुद्ध हो गए। भारतीयों ने इसे काला कानून कहकर सम्बोधित किया।

सिडनी रौलट

अंग्रेज सरकार ने 1917 में न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में, आतंकवाद एवं राष्ट्रवादी गतिविधियों को  कुचलने के लिए एक सेडिशन समिति गठित की। जिसके आधार पर  रोलेट एक्ट का निर्माण किया गया। यह 18 मार्च 1919 को भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया।


इसका उदेश्य भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलना था।  इस एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 ( The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था।

इसके मुख्य बातें निम्नलिखित थी-
1 ) शक के आधार पर बिना किसी सबूत के सरकार किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है और मुक़दमा चला सकती है।

2 ) ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सकती है।

3) राजद्रोह के मुकदमे की सुनवाई के लिए अलग न्यायालय स्थापित जायेंगे।

4) न्यायलय के फैसले के बाद पुनः अन्य उच्च न्यायालय में अपील नहीं कर सकते।

5 ) सरकार को बलपूर्वक प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार और किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार कारावास दे दे या देश से निष्कासित का अधिकार दे दिया गया।

रॉलेट एक्ट सत्याग्रह

महात्मा गाँधी  द्वारा रॉलेट एक्ट का विरोध किया गया।  पहले महात्मा गाँधी ने संवैधनिक तरीके से विरोध जताया। जब बात नहीं बनी तो महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह करने की घोषणा की और बम्बई में 24 फ़रवरी 1919 ई. को सत्याग्रह सभा की स्थापना की | रॉलेट विरोधी सत्याग्रह के दौरान,महात्मा गाँधी ने कहा कि “यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम मुक्ति केवल संघर्ष के द्वारा ही प्राप्त करेंगे न कि अंग्रेजों द्वारा हमें प्रदान किये जा रहे सुधारों से”|  

यह सत्याग्रह, राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह था जिसके लिए हड़तालों, धरनों, विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। साथ ही प्रमुख कानूनों की अवज्ञा तथा गिरफ़्तारी देने की योजना बनायीं गई। इस आंदोलन में देश की सारी जनता ने सक्रियता से भाग लिया। यह एक जन आंदोलन का रूप ले चुका था।  

सत्याग्रह आरम्भ करने के लिए 6 अप्रैल 1919 की तारीख़ तय की गई थी। परन्तु तारीख़ की गलत फहमी के कारण यह कईं  स्थानों  में पहले ही शुरू हो गया। अनेक स्थानों पर हिंसा हुई और अंग्रेज विरोधी प्रदर्शन किये गए।

अंग्रेजों द्वारा प्रदर्शनों को दबाने के लिए, अनेकों लोगों को गिरफ्तार किया गया, और लाठिओं और गोलीयों का सहारा लिया गया।  पंजाब में ये प्रदर्शन उग्र हो चुके थे।

अमृतसर में  9 अप्रैल को स्थानीय नेता सत्यपाल व किचलू को कैद कर लिया गया | इन नेताओं की गिरफ़्तारी का जनता ने तीव्र विरोध किया गया एवं विरोध प्रदर्शन किये गये। 11अप्रैल को जनरल डायर के में नेतृत्व में मार्शल लॉ लगा दिया गया। 13 अप्रैल,1919 को शांतिपूर्ण व निहत्थी भीड़ पर बिना किसी पूर्व चेतावनी के गोलियाँ बरसा दी गयीं। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया और राष्ट्रवादियों के मन में  उग्र प्रतिशोध को भड़का दिया|  अनेक स्थानों पर सत्यग्रहिओं ने हिंसा का मार्ग अपना लिया। जिससे आहात हो कर गाँधी जी ने 18 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह समाप्ति की घोषणा कर दी।

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