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ब्रिटिश सत्ता का विस्तार (सहायक संधि, विलय की नीति)

ब्रिटिश सत्ता का विस्तार

अंग्रेजों द्वारा भारत में अपनी सत्ता  का विस्तार प्रमुख रूप से 1757 से 1858 के मध्य किया गया।  इसके लिए उन्होंने दो तरह के रास्ते अपनाए।

(1) पहला युद्ध द्वारा दूसरे राज्य पर विजय प्राप्त करके
(2) दूसरा कूटनीतिक तरीकों से

कंपनी ने बंगाल, मैसूर, मराठा और सिक्ख जैसी शक्तियों को पराजित किया था। और उनको पराजित कर ब्रिटिश सत्ता के अधीन किया।

कूटनीतिक गतिविधियों में अंग्रेजों द्वारा प्रमुख रूप से तीन नीतियाँ अपनाई गयीं

(1) रिंग फेंस पालिसी 
इस पॉलिसी का जन्मदाता वारेन हेस्टिंग्स था। बंगाल विजय के उपरांत भी अंग्रेज इतने सशक्त नहीं थे कि वह मुगल, मराठा या सिख सेना का सामना कर पाते। इसलिए उन्होंने घेर की नीति की नीति अपनाई और बंगाल में होने वाले आपने फायदे को सुरक्षित करने के लिए बंगाल का रक्षा दायित्व अपने हाथ में ले लिया।

वास्तव में वेलेजली द्वारा आरंभ की गई सहायक संधि इसी नीति का परिष्कृत रूप थी।

(2) सहायक संधि:  यह नीति वेलेजली द्वारा आरंभ की गई यह रिंग फेंस नीति का ही परिष्कृत रूप था। इस संधि के अनुसार कंपनी राज्य को सुरक्षा का वचन देती और जिस राज्य से यह संध की जाती,  उस राज्य का अपनी सेना रखने का अधिकार समाप्त हो जाता।  साथ ही एक अंग्रेज अधिकारी 'रेजिडेंट' उस राज्य में नियुक्त कर दिया जाता।  ब्रिटिश राज्य को अपनी सेना प्रदान करते, जिसका रखरखाव का दायित्व राज्य का  होता। रेजीडेंट  राज्य के विदेशियों से होने वाले व्यवहार को सुनिश्चित करता।  राज्य स्वतंत्र रूप से किसी भी बाहरी राज्य से किसी भी प्रकार का कोई संबंध स्थापित नहीं कर सकता था।

इस प्रकार इन राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी जाती तथा यह राज्य अंग्रेजी दया पर निर्भर हो जाते।

जिन राज्यों से सहायक संधि की गई, वह राज्य थे:
हैदराबाद (1798),  मैसूर (1799), तंजीर (1799), अवध (1801), पेशवा (1801), बराड़ (1803), भोसले (1830), सिंधिया (1804)

(3) व्यपगत का सिद्धांत या विलय की नीति:  इस नीति का प्रयोग लॉर्ड डलहौजी ने, 1840 से 1856 में, अपने कार्यकाल के दौरान किया। इस नीति के अनुसार यदि किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई वारिस/  उत्तराधिकारी नहीं है, तो ब्रिटिश कंपनी उस राज्य का अधिग्रहण कर लेगी।

डलहौजी के इस मनमाने सिद्धांत के आधार पर कई राज्यों की रियासतों को कंपनी द्वारा हड़प कर लिया गया।

जिन राज्यों के साथ विलय की नीति लागू की गई, वह थे:
सतारा (1840), जयपुर (1849), संबलपुर (1849), बघाट (1850), उदयपुर (1852), झांसी (1853), नागपुर (1854)

डलहौजी की इस नीति के कारण राज्यों तथा रियासतों में तीव्र असंतोष फैला तथा 1857 की क्रांति का प्रमुख कारण बना। 

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